प्रथम कल्प में स्वंयभू मनु राजा नाम के राजा हुआ करते थे। उनके पुत्र प्रियवत नाम के राजा परम धार्मिक हुए। उन्होंने यज्ञ करके उत्तम दान दक्षिणा देकर यज्ञों को समाप्त किया ओर अपने सात पुत्रों को सातों द्वीपों का राजा बनाया ओर बद्रीनारायण की विशाल नगरी में तप करने चले गए। वे वहां तपस्या में लीन हो गए। नगरी में विचरण करते हुए एक दिन नारद मुनि वहां पहुंचे ओर राजा से कहा,  राजन मैंने श्वेत द्वीप के सरोवर में कन्या देखी है। उस कन्या से पूछा तुम इस विशाल द्वीप पर अकेले क्यूं रहती हो।

उस कन्या से उसका नाम पूछा तब कन्या ने कहा नारद तुम अपनी आंखें बंद करो तुम्हें सब पता चल जाएगा। नारद ने आंखें बंद की तो कन्या के स्वरूप में तीन दिव्य पुरुष दिखाई दिए। नारद ने अपनी शक्तियों को प्रयोग करके देखा पर वह उस कन्या के बारे में पता लगाने में असफल रहें। इसके बाद कन्या से नारद ने पूछा हे देवी आप कौन है, आपके सामने मेरी सारी शक्तियां विफल हो गई। इस पर कन्या ने कहा में सभी वेदों में निपुण सावित्री माता हूं।

सारी बातें बताते हुए नारद ने कहा राजन मैं अपनी सारी शक्तियों को भूल गया था। सावित्री माता ने मुझे कहा कि तुम प्रयाग राज्य में चले जाओ तब जाकर तुम्हें अपनी शक्तियों का अभ्यास दोबारा होगा। इतना कह कर प्रयाग के राजा से नारद ने कहा, हे राजन मुझे वेदों ओर शक्तियों के पुनः ज्ञान के लिए कोई मार्ग बताएं। राजन ने उपाय बताते हुए कहा मुनिवर आप महाकाल वन में चले जाइए। वहां पर प्रयाग के राजा विराजमान है। यहीं पर सनातन ज्योतिष रूप में लिंग स्थित है, जिसकी तुम प्रयाग राजा के नाम से पूजा करो।

भविष्य में इस शिवलिंग को प्रयागेश्वर महादेव के नाम से पूजा जाएगा। मान्यता है कि जो भी मनुष्य प्रयागेश्वर के दर्शन ओर पूजन करेगा वह अक्षय स्वर्ग में वास करेगा। दर्शन मात्र से सभी पापों का नाश होगा।