भगवान शंकर ने पार्वती को कथा सुनाते हुए बताया कि गणों में सबसे प्रिय गण घंटा नाम का गण है। देवताओं के संगीत सभागृह में इच्छा से शामिल होने के लिए चतुर गंधर्वों में श्रेष्ठ चित्रसेन से मिले और सभा में शामिल होने का उपाय पूछा। उपाय बताने से पूर्व चित्रसेन ने गण की परीक्षा ली और संगीत सुनाने को कहा। गण से संगीत सुनने के बाद चित्रसेन प्रसन्न हुए और सभा में जाने की आज्ञा दे दी। थोड़ी देर के बाद वहां भगवान शंकर का द्वारपाल आया और गण से कहा कि तुम महादेव को छोड़कर यहां बैठे हो। तुम्हें ब्रह्मा की सभा में जाने की अनुमति नहीं मिलेगी। इतना सुन कर गण दूर जाकर बैठ गया।

इसी प्रकार सोच विचार करते हुए एक वर्ष बीत गया परन्तु ब्रह्मा की सभा में जाना नहीं हुआ। इतने में ही उसने वीणा हाथ में लिए नारद जी को ब्रह्मा की सभा में जाते हुए देखा। उन्हें देखकर गण ने कहा हे नारद मुनि आप ब्रह्मा जी को मेरे आने की सूचना करो। यह सुनकर नारद जी ने कहा हे गण ब्रह्मा ने मुझे जरूरी कार्य के लिए देवाचार्य बृहस्पति के पास भेजा है, मैं उनसे मिल कर आता हूं और उन्होंने भगवान शंकर को सारी बातें बताईं। यह बात सुनकर शिव जी को गुस्सा आ गया। उन्होंनें श्राप देते हुए गण से कहा कि तू पृथ्वी पर गिर पड़ेगा। श्राप युक्त होकर गण पृथ्वी पर देवदारू वन में गिर पड़ा। भगवान शिव ने कहा जो व्यक्ति अपने स्वामी को छोड़कर दूसरे की सेवा करेगा वह इसी प्रकार नर्क में जाएगा। देवदारू वन में गण को तपस्या करते हुए कुछ ऋषि मुनि मिले। गण ने विलाप करते हुए बताया कि नारद मुनि ने मेरे साथ छल किया है। अब मैं दोनों स्थानों से गया।

गण का पश्चाताप देखकर भगवान शिव ने कहा तुम महाकाल वन में चले जाओ वहां रेवन्तेश्वर के पश्चिम में उत्तम लिंग है। तुम इस लिंग की पूजा करो यह लिंग तुम्हें सुख-समृद्धि देगा और भविष्य में यह लिंग घण्टेश्वर के नाम से जाना जाएगा। मान्यता है कि जो भी मनुष्य घंटेश्वर का दर्शन और पूजन करेगा उसे संगीत की सभी विधाओं का ज्ञान मिलेगा।