आनंदनयतः प्राप्तसिद्धिर्देवी सुदुलर्भा। अतोनामसुविख्यात मानन्देश्वरमीक्ष्यताम्।।
पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन काल में अनमित्र नाम के राजा थे। वे धर्मात्मा, पराक्रमी एवं सूर्य के समान तेजस्वी थे। उनकी रानी का नाम गिरिभद्रा था जो कि अति सुन्दर एवं राजा की प्रिय थी। राजा को आनंद नाम का एक पुत्र हुआ। पैदा होते ही वह अपनी माता की गोद में हंसने लगा। माता ने आश्चर्यचकित हो उससे हंसने का कारण पूछा। उसने कहा उसे पूर्वजन्म का स्मरण है, आगे उसने कहा कि यह सारी सृष्टि स्वार्थ की है। आगे बालक कहता है कि एक बिल्ली रूपी राक्षसी अपने स्वार्थ के लिए मुझे उठा कर ले जाना चाहती है। और आप भी मेरा पालन-पोषण कर मुझसे कुछ अपेक्षाएं रखती हैं। आप स्वयं भी स्वार्थी हैं। बालक के ऐसे वचन सुन माता गिरिभद्रा नाराज हो सूतिका गृह से बाहर चली गई। तब वह राक्षसी ने उस बालक को उठाकर विक्रांत नामक राजा की रानी हैमिनी के शयन-गृह में रख दिया। राजा विक्रांत उस बालक को अपना बालक जान कर अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने उसका नाम आनंद रख दिया। इसके साथ ही राक्षसी ने राजा विक्रांत के असली पुत्र को ले जाकर बोध नामक ब्राह्मण के घर पर रख दिया। ब्राह्मण ने उसका नाम चैत्र रथ रखा।
इधर विक्रांत ने पुत्र आनंद का यज्ञोपवीत संस्कार किया। तब गुरु ने उससे माता को नमस्कार करने को कहा। प्रत्यत्तर में आनंद ने कहा कि, मैं कौन सी माता को नमस्कार करूं? जन्म देने वाली या पालन करने वाली? गुरु ने कहा राजा विक्रांत की पत्नी हैमिनी तुम्हें जन्म देने वाली माता है, उसे नमस्कार करो। तब आनंद ने कहा, मुझे जन्म देने वाली मां गिरिभद्रा है। माता हैमिनी तो चैत्र की मां है जो कि बोध ब्राह्मण के घर पर है। आश्चर्यचकित हो सभी ने उससे वृत्तांत सुनाने को कहा। तब आनंद ने बताया कि दुष्ट राक्षसी ने पुत्रों को बदल दिया था। अतः मेरी दो माताएं हो गई है। इस दुनिया में मोह ही सारी समस्याओं की जड़ है अतः मैं अब सारी मोह माया त्याग कर तपस्या करूंगा। अतः आप अपने पुत्र चैत्र को ले आइए। आनंद की बात सुन राजा ब्राह्मण बोध से अपने पुत्र चैत्र को ले आया और उसे अपने उत्तराधिकार का स्वामी बना दिया। राजा ने आनंद को ससम्मान विदा किया और आनंद तपस्या करने महाकाल वन आया। उसने इंद्रेश्वर के पश्चिम में स्थित लिंग की आराधना की। उसकी तपस्या के फलस्वरूप भगवान शिवजी प्रसन्न हुए और उसे आशीर्वाद दिया कि तुम यशस्वी छटे मनु बनोगे। आनंद के द्वारा पूजित होने से वह लिंग आनंदेश्वर कहलाया।
मान्यतानुसार श्री आनंदेश्वर महादेव के दर्शन करने से पुत्र लाभ होता है। श्री आनंदेश्वर महादेव का मंदिर चक्रतीर्थ में विद्युत शवदाहगृह के पास स्थित है।