त्रिषु लोकेषु विख्यातं द्वात्रिंशत्तममुत्तमम्। विद्धि सिद्धि प्रदं पुंसां पत्तनेश्वरमीश्वरम्।।
श्री पत्त्नेश्वर महादेव की महिमा का गान स्वयं भगवान शिव एवं महर्षि नारद द्वारा किया गया है जो स्कन्द पुराण में वर्णित है। एक समय भगवान शिव और माता पार्वती कैलाश पर्वत की एक गुफा में विहार कर रहे थे। उस समय पार्वती जी ने कहा कि प्रभु, कैलाश पर्वत जहां स्फटिक मणि लगी हुई है, जो अनेक प्रकार के पुष्पों और केवे के वृक्ष से सुशोभित है, जहां सिद्ध, गन्धर्व, चारण, किन्नर आदि उत्तम गायन करते हैं, जिसे पुण्य लोक की उपमा प्राप्त है, ऐसा मनोरम कैलाश पर्वत आपने क्यों छोड़ दिया? और ऐसा रमणीय कैलाश पर्वत छोड़ कर आपने हिंसक पशुओं से युक्त महाकाल वन में क्यों निवास किया?
प्रत्युत्तर में भगवन शंकर बोले- मुझे महाकाल वन और अवंतिकापुरी स्वर्ग से भी अधिक सुखदायी प्रतीत होती है। यहां पांचों गुण- श्मशान, शक्तिपीठ, तीर्थक्षेत्र, वन और उशर है। यहां गीत, वाद्य, चातुर्य की इतनी स्पर्धा है कि स्वर्ग लोक वाले भी उस ज्ञान को सुनने के लिए उत्सुक रहते हैं। ऐसा स्थान तीनों लोकों में नहीं है।
तभी वहां नारद मुनि आए। उन्हें देख कर महादेव बोले कि देवर्षि, कौन-कौन से तीर्थों का भ्रमण करके आ रहे हैं? कौन सा स्थान आपको सबसे ज्यादा रमणीय लगा? उत्तर देते हुए नारद मुनि कहने लगे, मैंने कई तीर्थों एवं मंदिरों की यात्रा की, उनमें अत्यधिक मनोहर, अत्याधिक विचित्र महाकाल वन है। वहां कामना पूर्ण होने के साथ उत्तम सुख की प्राप्ति होती है। वहां सदैव पुष्पों की बहार रहती है एवं सुख प्रदान करने वाली पवन बहती है। वहां मधुर संगीत गुंजायमान है। उरध लोक, अधो लोक, सप्त लोक के लोग वहां पुण्य प्राप्ति के लिए निवास करते हैं। वहां स्वयं भगवान शिव पत्त्नेश्वर के रूप में विराजमान है।
मान्यतानुसार श्री पत्त्नेश्वर महादेव के दर्शन करने से मृत्यु, बुढ़ापा, रोग आदि भय एवं व्याधियां समाप्त हो जाती है। श्रवण मास में यहां दर्शन का विशेष महत्व है। श्री पत्त्नेश्वर महादेव खिलचीपुर में पीलिया खाल के पूल पर स्थित है।

84 महादेव : श्री पत्त्नेश्वर महादेव (32)
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