प्राचीन समय में एक राजा थे निमि। अपने पुण्य कर्मो के कारण यमराज के दूत उन्हे विमान में लेकर स्वर्ग जा रहे थे। यमदूत उन्हें दक्षिण मार्ग से नरक के सामने से लेकर जा रहा था। राजा निमि ने वहां करोड़ों लोगों को अपने पापों का फल भुगतते देखा, जिससे उन्हें पीड़ा हो रही थी। उन्होंने यमदूत से पूछा कि मुझे किस कर्म के कारण नरक के सामने से गुजरना पड़ा है, दूत ने कहा कि आपने श्राद्ध के दिन दक्षिणा नहीं दी उसी कर्म के कारण आपको यह फल मिल रहा है। इसके बाद राजा ने पूछा मुझे किस कर्म के कारण स्वर्ग की प्राप्ति हो रही है। इस पर यमदूत ने कहा कि आपने महाकाल वन में अश्विन में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को भगवान मनकेश्वर का दर्शन-पूजन किया था, जिसके फलस्वरूप आपको स्वर्ग की प्राप्ति हुई है।
जैसे ही वे लोग आगे चलने लगे नरक के पापियों ने कहा कि हे राजन आप थोड़ी देर ओर रूकें, आपके शरीर को स्पर्श कर आने वाली वायु पीड़ा में राहत दे रही है। राजा निमि ने दूत से कहा कि वे अब स्वर्ग नहीं जाएंगे ओर यही खड़े रहकर पापियों को सुख देगे। इस पर इंद्र वहां उपस्थित हुए और राजा से स्वर्ग चलने का विनय किया। राजा ने मना किया ओर पूछा कि ये पापी अपने कर्म फल से कैसे मुक्त होंगे? तब इंद्र ने कहा कि यदि आप अपने भगवान के दर्शन का पुण्य फल इन्हें दान कर दें तो सभी मुक्त हो जाएंगे। राजा निमि ने अपना पुण्य फल सभी पापियों को दान कर दिया, जिससे सभी पापी अपने पाप से मुक्त हो गए। मान्यता है कि अनरकेश्वर के दर्शन मात्र से नरक से मुक्ति मिलती है। अश्विन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को पूजन करने से मनुष्य के सौ जन्मों के पाप नष्ट होते हैं ओर वह स्वर्ग के सुखों का भोग करता है।

84 महादेव : श्री अनरकेश्वर महादेव (27)
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