द्वादशं विद्धि देवेशि, लोकपलेश्वरम् शिवं।
यस्य दर्शन मात्रेण, सर्वपापैः प्रमुच्यते।।
श्री लोकपालेश्वर महादेव की कथा देवताओं पर दैत्यों के बढ़ते प्रभुत्व और फिर उनकी शिव आराधना द्वारा दैत्यों के संहार से जुड़ी हुई है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप द्वारा अनेक दैत्यगण पैदा हुए थे। उन्होंने वन पर्वतों में जा आश्रम नष्ट कर सम्पूर्ण पृथ्वी को उथल-पुथल कर दिया। यज्ञ नष्ट हो गए। वेदों की ध्वनि बंद हो गई। पिंडदान देना बंद हो गए और पृथ्वी यज्ञ रहित हो गई। तब लोकपाल (देवतागण) भयभीत होकर भगवान विष्णु के पास पहुंचे और हाथ जोड़ कर प्रार्थना करने लगे कि प्रभु आपने पहले भी नमुचि, वृषभरवन, हिरण्यकशिपु, नरकासुर, मुरनामा, आदि दैत्यों से हमारी रक्षा की है। कृपा करके इन दैत्यों से भी हमारी रक्षा करें, हम आपकी शरण में है।
दूसरी ओर दैत्य अपना आधिपत्य बढ़ाते जा रहे थे। फिर स्वर्गपुरी में जाकर उन्होंने इंद्र को, दक्षिण दिशा में धर्मराज को, पश्चिम दिशा में जाकर जलराज वरुण को और उत्तर दिशा में कुबेर को जीत लिया। तब भगवान विष्णु ने देवताओं को व्याकुल देख उन्हें महाकाल वन जाने का उपाय बताया। उन्होंने कहा कि महाकाल वन में जाओ और देवाधिदेव महादेव की आराधना करो। यह सुनकर सभी लोकपाल महाकाल वन पहुंचे लेकिन वहां भी दैत्यों ने उनके मार्ग में अवरोध उत्पन्न किया।
तब नारायण के कहने पर वे भस्म लगा कर, घंटा, नुपूर, कपाल आदि धारण कर कापालिक वेश में महाकाल वन पहुंचे जहां उन्हें एक दिव्य लिंग के दर्शन हुए। पूर्ण श्रद्धा भाव से सभी लोकपाल उस लिंग की स्तुति करने लगे जिसके परिणामस्वरूप उस लिंग में से भयंकर ज्वालाएं निकली और जहां-जहां दानव थे वहां पहुंच कर उन सब दैत्यों को जलाकर भस्म कर दिया। समस्त लोकपालों ने इस लिंग की स्तुति की इसलिए इन्हें लोकपालेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है।
दर्शन लाभ:
मान्यतानुसार यहां दर्शन कर लेने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है। ऐसा भी माना जाता है कि यहां दर्शन करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। यहां दर्शन बारह मास में कभी भी किए जा सकते हैं लेकिन संक्रांति, सोमवार, अष्टमी और चतुर्दशी के दिन दर्शन का विशेष महत्व माना जाता है। उज्जैन स्थित श्री लोकपालेश्वर महादेव हरसिद्धि दरवाजे पर स्थित है।

84 महादेव : श्री लोकपालेश्वर महादेव(12)
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