लिङ्गं एकादशं विद्धि देवि सिद्धेश्वरम् शुभम।
वीरभद्र समीपे तु सर्व सिद्धि प्रदायकम्।।
श्री सिद्धेश्वर महादेव की स्थापना की कथा ब्राह्मणों द्वारा स्वार्थवश सिद्धि प्राप्त करने की दशा में नास्तिकता की ओर बढ़ने और फिर उनकी महादेव आराधना से जुडी हुई है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार देवदारु वन में समस्त ब्राह्मणगण एकत्रित हो सिद्धि प्राप्त करने हेतु तप करने लगे। किसी ने शाकाहार से, किसी ने निराहार से, किसी ने पत्ते के आहार से, किसी ने वीरासन से, आदि प्रकारों से ब्राह्मण तपस्या करने लगे। किन्तु सैकड़ों वर्षों के बाद भी उन्हें सिद्धि प्राप्त नहीं हुई। इसके फलस्वरूप ब्राह्मण बेहद दुखी हुए एवं उनका ग्रंथों, वचनों पर से विश्वास उठने लगा। वे नास्तिकता की ओर बढ़ने लगे। तभी आकाशवाणी हुई कि आप सभी ने स्वार्थवश एक दूसरे से स्पर्धा करते हुए तप किया है इसलिए आपमें से किसी को भी सिद्धि प्राप्त नहीं हुई। काम, वासना, अहंकार, क्रोध, मोह,लोभ आदि तप की हानि करने वाले कारक हैं। इन सभी कारकों से वर्जित होकर जो तपस्या व देव पूजा करते हैं उन्हें सिद्धि प्राप्त होती है।
अब आप सभी महाकाल वन में जाएं और वहां वीरभद्र के पास स्थित लिंग की पूजा-अर्चना करें। सिद्धि के दाता सिर्फ महादेव ही है। उन्हीं की कृपा से सनकादिक देवता को सिद्धि प्राप्त हुई थी। इसी लिंग के पूजन से राजा वामुमन को खंड सिद्धि, राजा हाय को आकाशगमन की सिद्धि, कृतवीर्य को हज़ार घोड़े, अरुण को अदृश्य होने की, इत्यादि सिद्धियां प्राप्त हुई हैं। उस लिंग की निस्वार्थ आराधना करने से आप सभी को भी सिद्धि प्राप्त होगी।
तब वे सभी ब्राह्मणगण महाकाल वन में आए और सर्वसिद्धि देने वाले इस शिव लिंग के दर्शन किये जिससे उन्हें सिद्धि प्राप्त हुई। उसी दिन से वह लिंग सिद्धेश्वर के नाम से विख्यात हुआ।
दर्शन लाभ:
मान्यतानुसार जो भी मनुष्य 6 महीने तक नियमपूर्वक श्री सिद्धेश्वर का दर्शन करते हैं उन्हें वांछित सिद्धि प्राप्त होती है। कृष्णपक्ष की अष्टमी और चतुर्दशी को जो सिद्धेश्वर महादेव के दर्शन करता है उसे शिवलोक प्राप्त होता है। श्री सिद्धेश्वर महादेव उज्जैन में भेरूगढ़ क्षेत्र में स्थित सिद्धनाथ के मुख्य द्वार पर स्थित है। सिद्धनाथ जाने वाले श्रद्धालु यहां आकर दर्शन लाभ लेते हैं।

84 महादेव : श्री सिद्धेश्वर महादेव (11)
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