प्राचीन काल में राजा थे पद्य। वे महापराक्रमी ओर धर्मनिष्ठ थे। एक बार राजा अपनी सेना के साथ शिकार करने के लिए वन में गए। वहां एक मृग का पीछा करते हुए दूसरे वन में चला गए। प्यास से व्याकुल राजा एक आश्रम में पहुंच गए। यहां राजा को देख मुनि कन्या सामने आई और राजा का आदर सत्कार किया। राजा ने उससे पूछा यह किसका आश्रम है और तुम कौन हो।

कन्या ने कहा कि यह मुनि कण्व का आश्रम है और मैं उनकी कन्या हूं। मैं मुनि को अपना पिता मानती हूं मेरे पिता कौन है मुझे नहीं पता। कन्या के रूप पर मोहित होकर राजा ने उससे विवाह का प्रस्ताव दिया। कन्या ने कहा कि मुनि कण्व आते ही होंगे वे ही मेरा दान करेंगे। राजा ने कन्या से कहा कि मैं इतनी देर प्रतीक्षा नहीं कर सकता। मैं तुमसे अभी गंधर्व विवाह करता हूं। कन्या ने इस पर स्वीकृति दे दी। इसी बीच मुनि कण्व भी वहां आ गए और राजा और कन्या को विवाह बंधन में देख क्रोधित होकर दोनों को श्राप दिया कि वे दोनों कुरूप हो जाए। दोनों ने मुनि से क्षमा मांगी ओर पुनः रूपवान होने का उपाय पूछा। मुनि ने उनसे कहा कि तुम दोनों जल्द ही महाकाल वन में पशुपतेश्वर महादेव के पूर्व में स्थित शिवलिंग के दर्शन करो, तुम दोनों रूप को प्राप्त करोगे। राजा और कन्या तुरंत महाकाल वन में आए और शिवलिंग के दर्शन किए। शिवलिंग के दर्शन मात्र से दोनों पहले से भी अधिक रूपवान हो गए और फिर राज्य में लौट गए ओर अंतकाल में स्वर्ग को प्राप्त किया।

मान्यता है कि जो भी रूपेश्वर महादेव के दर्शन ओर पूजन करता है वह रूपवान होगा। अंतकाल में शिवलोक को प्राप्त करेगा।