काफी समय पहले अश्वाहन नामक एक राजा हुआ करते थे। राजा धर्मात्मा और कीर्तिवान थे। उनके राज्य में प्रजा सुखी रहती थी। काशी राजा की पुत्री मदनमंजरी उनकी पत्नी थी। वह भी अत्यंत सुंदर ओर गृहकार्य में निपुण थी। पति का हित चाहने वाली व धर्मात्मा थी। पूर्व कर्म के कारण वह दुर्भगा थी। राजा अश्वाहन को वह प्रिय नहीं थी। रानी के स्पर्श मात्र से राजा का शरीर जलने लगता था।
एक बार राजा ने क्रोध में आकर आदेश दिया कि रानी को वन में छोड़कर आ जाए। रानी वन में अपने भाग्य को कोसने लगी। इसी समय एक तपस्वी उसे नजर आया। रानी ने उनसे अपनी पूरी व्यथा कही और पूछा कि उसे सौभाग्य कैसे प्राप्त होगा। तपस्वी ने ध्यान कर रानी को बताया कि तुम्हारे विवाह के समय तुम्हारे पति को पाप ग्रहों ने देखा है इस कारण वह तुम्हें प्रेम नहीं करता है। तुम अंवतिका नगरी में स्थित महाकाल वन में जाओ और वहां सौभाग्येश्वर महादेव का पूजन करों। तुम्हारे पूर्व इंद्राणी ने भी उनका पूजन कर इंद्र को प्राप्त किया था। रानी ने अंवतिका नगरी में महाकाल वन पहुंच कर भगवान का दर्शन किया। रानी के दर्शन मात्र से राजा को रानी का स्मरण आया और राजा ने जमदग्नि मुनि से रानी का पता पूछा । मुनि ने कहा कि रानी महाकाल वन में में सौभाग्येश्वर महादेव का पूजन कर रही हैं। राजा वहां पहुंचा व रानी को पाकर प्रसन्न हुआ। राजा-रानी के मिलन से उनके एक पुत्र हुआ। जिसका नाम व्रत रखा गया।
मान्यता है कि जो भी सौभाग्येश्वर महादेव के दर्शन कर पूजन करता है उस पर ग्रह दोष नहीं लगता है।

84 महादेव : श्री सौभाग्येश्वर महादेव(61)
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