म्लेच्छ गणों का राजा था लुम्पाधिप। उसकी रानी थी विशाला। एक बार राजा ब्राह्मणों के कहने पर युद्ध करने के लिए सामग नामक ब्राह्मण के आश्रम गया। वहां राजा ने आश्रम में कामधेनु गाय की मांग की ब्राह्मण ने मना किया तो राजा ने कामधेनु गाय के साथ पूरे आश्रम का नाश कर दिया। राजा ने अपने बाणों से सागम मुनि का भी वध कर दिया ओर वहां से चला गया। कुछ देर बाद ही वहां सागम मुनि का पुत्र समिधा आश्रम पहुंचा और अपने पिता को मृत देखकर वह रूदन करने लगा ओर फिर उसने अपने पिता की हत्या करने वाले राजा को श्राप दिया कि वह कुष्ठ रोग से पीडित होगा। श्राप के प्रभाव से राजा कुष्ठ रोग से पीडित होकर मृत्यु को प्राप्त करने के लिए निकल गया।

राजा के चिता पर होने पर वहां नारद मुनि प्रकट हुए और उसे समिधा के श्राप से अवगत कराया। नारद मुनि के कहने पर राजा महाकाल वन में केशवार्क महादेव के पास स्थित शिवलिंग का पूजन करने के लिए निकल गया। राजा ने अपनी रानी के साथ शिप्रा स्नान किया ओर शिवलिंग के दर्शन किए। दर्शन मात्र से राजा का कुष्ठ रोग दूर हो गया। राजा ने आपनी रानी के साथ वहां उपस्थित मुनियों का सम्मान किया। राजा लुम्पाधिप के पूजन के कारण शिवलिंग लुम्पेश्वर महादेव के नाम से विख्यात हुआ। मान्यता है कि जो भी मनुष्य पूर्ण भक्ति से पूजन करेगा उसके सात जन्मों के पाप नष्ट होंगे ओर अंतकाल में परम पद को प्राप्त करेगा।