भविष्यन्ति नरा भूमौ कृतार्थास्तत्प्रभावतः।दर्शनादस्य लिङ्गस्य कामवृष्टिर्भविष्यति।।स्कन्द पुराण, त्रयोविंशोअध्यायः (श्लोक 39)
श्री मेघनादेश्वर महादेव की स्थापना की कथा पुण्य कर्मों की महत्ता और दोषों के दुष्परिणाम की ओर इंगित करती है। राजा के दोषों एवं दुष्कर्मों के कारण ही वर्षा बाधित हुई।
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक समय द्वापर और कलियुग की संधि पर मदांध नामक अहंकारी राजा हुआ था। वह राजा दुष्ट प्रवत्ति का था। राजा के दोषों व पापों के कारण बारह वर्षों तक वर्षा नहीं हुई। वर्षावृष्टि न होने की स्थिति में नदियां सुख गई, तालाब अदृश्य हो गए, यज्ञ वेदाध्ययन आदि सब बंद हो गए। पृथ्वी पर सभी दिशाओं में हाहाकार मच गया। यह देखकर इंद्र आदि देवता क्षीरसागर के उत्तर में श्वेतद्वीप स्थित भगवान जनार्दन के पास गए। वहां पहुंच उन्होंने भगवान को प्रणाम किया एवं उनकी स्तुति करने लगे। तब भगवान ने पूछा कि आप लोग क्यों क्यों पधारे हैं एवं आपकी अभिलाषा क्या है? तब देवतागण बोले कि प्रभु कई वर्षों से वृष्टि नहीं हुई है, कृपया कोई उपाय कीजिए।
देवताओं की बात सुन भगवान जनार्दन कुछ देर के लिए ध्यानमग्न हो गए फिर बोले कि आप सभी कृपया महाकाल वन जाएं। वहां प्रतिहारेश्वर के ईशान कोण में एक दिव्य लिंग है जिसमें वृष्टि करने वाले मेघ निवास करते हैं। आप सब वहां जाएं और भक्ति भाव से उस लिंग का पूजन-अर्चन करें। उनके पूजन-अर्चन से वृष्टि जरूर होगी। श्री भगवान की बात सुन सभी देवगण महाकाल वन स्थित उस दिव्य लिंग के पास पहुंचे और भक्तिमय भाव से स्तुति करने लगे। स्तुति के फलस्वरूप उस लिंग से कई मेघ प्रकट हुए और आकाश में छाकर वृष्टि करने लगे। सम्पूर्ण सृष्टि फिर से सुस्थिर हुई और पृथ्वी के सभी जीव-जंतुओं, पक्षियों तथा मानवों का संताप दूर हुआ। देवतागण इसे अमृत वर्षा मान बेहद प्रसन्न हुए एवं उन्होंने उस लिंग का नाम मेघनादेश्वर रखा।
मान्यतानुसार श्री मेघनादेश्वर महादेव के पूजन अर्चन करने से वृष्टि में वृद्धि होती है। ऐसा माना जाता है कि यहां दर्शन करने से पितरों को शांति मिलती है। उज्जयिनी स्थित चौरासी महादेव में से एक श्री मेघनादेश्वर महादेव छोटा सराफा में नृसिंह मंदिर के पीछे स्थित है।

84 महादेव : श्री मेघनादेश्वर महादेव(23)
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