ईशानेश्वर संज्ञन्तु षोडशम् विद्धि पार्वती।
यस्य दर्शन मात्रेण ऐश्वर्य जायते नृणाम्।।
श्री ईशानेश्वर महादेव की स्थापना की कहानी बुराई पर अच्छाई की जीत का माहात्म्य दर्शाती है कि किस प्रकार दानवों के शक्तिशाली आधिपत्य के बाद भी शिव शक्ति द्वारा उनका संहार किया गया।
प्राचीन कल में तुहुण्ड नाम का एक दानव था। उसने देवताओं के साथ ऋषियों, गन्धर्वों, यक्षों को भी अपने अधीन कर लिया। उसने इंद्र के ऐरावत हाथी और उच्चश्रवा घोड़े को भी अपने अधीन कर लिया। उसने स्वर्ग का द्वार रोक देवताओं के सभी अधिकार छीन लिए। तब सभी देवता अत्यंत चिंतित हो विचार करने लगे। इतने में महामुनि नारद वहां पहुंच गए। तब सभी देवताओं ने उन्हें प्रणाम किया एवं तुहुण्ड दानव द्वारा किए गए अत्याचारों एवं कुकर्मों के बारे में बताया। साथ ही नारद मुनि से आग्रह किया कि वे इस दानव तुहुण्ड के कहर से उन्हें बचाने का कोई उपाय बताएं। तब नारद मुनि ने ध्यान किया तत्पश्चात कहा कि आप सभी महाकाल वन जाइए और वहां इन्द्रद्युम्नेश्वर के पास ईशानेश्वर नामक स्थान पर स्थित दिव्य लिंग का पूजन अर्चन करें।
नारद मुनि के वचन सुन सभी देवतागण महाकाल वन स्थित ईशानेश्वर में उस दिव्य लिंग के पास पहुंचे। सभी देवतागण वहां पूरे भक्ति भाव से शिव की स्तुति करने लगे। तब उस लिंग में से धुआं निकलने लगा और फिर एक भीषण ज्वाला प्रकट हुई। उस ज्वाला ने मुंडासुर के पुत्र तुहुण्ड को उसकी सेना सहित भस्म कर दिया। इसी प्रकार तुहुण्ड के समाप्त होने के पश्चात सभी देवताओं को अपना स्थान एवं अपने अधिकार प्राप्त हुए। तब सभी देवतागण बोले कि हमें ईशानेश्वर में ही अपना सर्वस्व फिर प्राप्त हुआ है इसलिए हम इनका नाम ईशानेश्वर ही रखते हैं और त्रिलोक में इन्हे ईशानेश्वर महादेव के नाम से जाना जाएगा।
दर्शन लाभ:
मान्यतानुसार जो भी मनुष्य श्री ईशानेश्वर महादेव के दर्शन करते हैं उन्हें शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। उनके सारे कार्य पूर्ण होते हैं साथ ही पापों का नाश होता है। उज्जयिनी स्थित चौरासी महादेव में से एक श्री ईशानेश्वर महादेव का मंदिर पटनी बाजार क्षेत्र में मोदी की गली के बड़े दरवाजे में स्थित है।

84 महादेव : श्री ईशानेश्वर महादेव(16)
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