त्रिविष्टपेश्वरं देवि सप्तमं पर्वतात्मजे।
यस्य दर्शन मात्रेण लभ्यते तत्रिविष्टपम्।।
चौरासी महादेव में से एक त्रिविष्टपेश्वर महादेव की स्थापना स्वयं देवताओं ने की है जो महाकाल वन की सुंदरता और महत्ता दर्शाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार देवऋषि नारद स्वर्गलोक में इंद्र देव के दर्शन करने गए। वहां इंद्र देव ने महामुनि नारद से महाकाल वन का माहात्म्य पूछा। तब नारद मुनि ने कहा महाकाल वन सब तीर्थों में उत्तम तीर्थ है। वहां साक्षात महेश्वर अपने गणों सहित निवास करते हैं। वहां साठ करोड़ हजार तथा साठ करोड़शत लिंग निवास करते हैं जो भक्ति और मुक्ति प्रदान करने वाले हैं। साथ ही वहां नव करोड़ों शक्तियां भी निवास करती हैं।
यह सुनकर इंद्र तथा अन्य देवता महाकाल वन पहुंचते हैं। वहां पहुंच कर देवता महाकाल वन को ब्रह्म लोक तथा विष्णु लोक से भी अधिक श्रेष्ठ पाते हैं। तब वहां आकाशवाणी हुई कि आप सभी देवता मिल कर एक लिंग की स्थापना कर्कोटक से पूरब में और महामाया के दक्षिण में करें। यह सुनकर देवताओं तथा इंद्र ने अपने नाम से त्रिविष्टपेश्वर महादेव की स्थापना की एवं उनका विधिवत पूजन अर्चन किया।
दर्शन लाभ
त्रिविष्टपेश्वर महादेव महाकाल मंदिर में स्थित ओंकारेश्वर मंदिर के पीछे स्थित है। बारह मास महाकाल दर्शन को आने वाले श्रद्धालु यहां दर्शन कर मनोकामना की पूर्ति हेतु प्रार्थना करते हैं लेकिन अष्टमी, चतुर्दशी तथा संक्रांति के दिन पूजन अर्चन करने से विशेष फल प्राप्त होता है।

84 महादेव : श्री त्रिविष्टपेश्वर महादेव(7)
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