एक बार मां पार्वती ने शिवजी से पृथ्वी पर उत्तम स्थान को देखने की बात कही। शिवजी उन्हें महाकाल वन लाए और बताया कि यह स्थान तीनों लोको में सर्वोत्तम है। पार्वती के कहने पर भगवान शंकर ने चार दिशाओं में चार द्वार बनाए। द्वारपालों की स्थापना की शिवजी ने पूर्व दिशा में पिंगलेश्वर, दक्षिण में कायवरोहणेश्वर, उत्तर में विश्वेश्वर, ओर पश्चिम में दुर्देश्वर की स्थापना की। शिव ने गणों को आज्ञा दी की जो भी मनुष्य इस क्षेत्र में मृत्यु को प्राप्त हो वे उसकी रक्षा करें। इसके बाद भगवन शिव ने पार्वती को पिंगलेश्वर की कथा बताई।

कान्यकुब्ज नगर में एक कन्या थी जिसका नाम था पिंगला वह अत्यंत सुंदर थी पिता विपेन्द्र पिंगल धर्म व वेद के ज्ञाता थे। जब उनकी पत्नी मृत्यु को प्राप्त हो गई विपेन्द्र घर छोड़कर बेटी का भी रक्षण करने लगा एक दिन विपेन्द्र की भी मृत्यु हो गई पिता की मृत्यु से पिंगला दुखी हो गई ओर रूदन करने लगी धर्मराज ब्राह्मण का रूप लेकर आए और उसे बताया कि यह दुख तुम्हें पिछले जन्म के कर्म के कारण मिल रहा है। पिछले जन्म में भी तुम अंत्यत सुदंर थी ओर वैश्यावृत्ति करती थी एक ब्राह्मण तुम्हारे रूप के वशीभूत होकर साथ रहता था। तुम्हारे साथ रहने के लिए अपनी पत्नी का त्याग कर दिया था। एक दिन एक शूद्र ने घर में उस ब्राह्मण की हत्या कर दी उस ब्राह्मण के माता-पिता ने तुम्हें श्राप दिया की तुम पिता वियोग सहोगी ओर पति को प्राप्त नहीं करोगी। पिंगला ने उनसे पूछा कि वह ब्राह्मण जन्म मे कैसे हुई धर्मराज ने बाताया कि एक बार वासना से पीडित एक ब्राह्मण को राजा ने बंधक बना लिया उस ब्राह्मण को तुमने बंधन से छुडाया और घर ले आई उस ब्राह्मण के साथ रहने के कारण तुम्हें इस जन्म में ब्राह्मण का जन्म मिला। पिंगला ने पूछा अब उसे मुक्ति कैसे प्राप्त होगी। धर्मराज ने बताया कि अवंतिका में महाकाल वन में पूर्व दिशा मे शिवलिंग का दर्शन करो उससे तुम्हारी मनोकामना पूर्ण होगी। पिंगला महाकाल वन आई और यहां शिवलिंग के दर्शन कर देह को त्याग कर शिवलिंग में लीन हो गई।

पिंगला के मुक्ति से शिवलिंग का नाम पिंगलेश्वर हुआ। मान्यता है कि जो भी मनुष्य पिंगलेश्वर महादेव के दर्शन करेगा उसके घर में सदा धर्म और धन निवास करेंगे और अंतकाल में स्वर्ग को प्राप्त करेगा। यह मंदिर पिंगलेश्वर गांव में स्थित है। यह मंदिर द्वारपालेश्वर के नाम से भी जाना जाता है।