विश्वकर्मा की संज्ञा नामक पुत्री सूर्य की पत्नी थी। सूर्य का तेज न सह पाने के कारण उसने अपने समान एक अन्य स्त्री को उत्पन्न किया ओर उसे आज्ञा दी की तुम सूर्य की सेवा करना ओर उन्हें मेरा पता कभी मत बताना। सूर्य ने उस स्त्री को अपनी पत्नी संज्ञा माना ओर उससे एक पुत्र हुआ, जिसका नाम शनैश्चर हुआ। शनैश्चर के प्रभाव से सभी भयभीत हो गए।
इंद्र ब्रह्मदेव के पास पहुंचे ओर शनैश्चर के प्रभाव से सभी रक्षा करने की बात कही। ब्रह्मदेव ने सूर्य को समस्या बताई। सूर्य ने कहा कि आप ही शनिदेव को समझाएं, वह मेरी बात नहीं सुनता है। ब्रह्मदेव ने भगवान कृष्ण को यह समस्या बताई। कृष्ण ने देवों व ब्रह्मा को महादेव के पास जाने के लिए कहा। भगवान शंकर ने शनैश्चर को बुलाया ओर कहां कि तुम पृथ्वी लोक के प्राणियों को पीड़ा पहुंचाते हो परंतु उनका कल्याण भी करना। बारह राशियों में अलग-अलग स्थानों पर रहने से तुम्हारा अलग-अलग प्रभाव होगा। अब तुम महाकाल वन में जाओ ओर पृथुकेश्वर के पश्चिम में स्थित लिंग का पूजन करों। वह लिंग तुम्हारे नाम स्थावर के नाम से स्थावरेश्वर के नाम से विख्यात होगा। शनैश्चर महाकाल वन में आए ओर शिवलिंग के दर्शन कर पूजन किया।

84 महादेव : श्री स्थावरेश्वर महादेव(50)
84 महादेव : श्री स्थावरेश्वर महादेव(50)
External Links
- Kumbh Mela 2028 Ujjain
- Know Ujjain and its Culture
- Mahakal and Bhasmarti
- How to book bhasmarti tickets
- Temples of Ujjain
- Omkareshwar Darshan