भगवान शिव को पूजन में अनेक सामग्री चढ़ाने का विधान है। वे पुष्प से भी प्रसन्न हैं तो धतूरे से भी। उन्हें चंदन चढ़ाया जाता है तो भस्म भी उनका श्रृंगार है। भगवान शिव के बारे में प्रसिद्ध है कि उन्हें बिल्व पत्र चढ़ाया जाए तो वे भक्त की मनोकामना जरूर पूरी करते हैं।

आमतौर पर लोगों को यह तो मालूम होता है कि बिल्व पत्र शिव को विशेष प्रिय है लेकिन इस बारे में बहुत कम लोगों को ही जानकारी होती है कि बिल्व पत्र किस दिन नहीं तोडऩा चाहिए और इस दौरान किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। पढिए, ऐसी ही कुछ जरूरी बातें।

इस दिन न तोड़ें बिल्व पत्र
– चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी और अमावस्या को बिल्व पत्र नहीं तोडऩा चाहिए।

 भगवान शिव के प्रिय दिन यानी सोमवार को भी बिल्व पत्र नहीं तोडऩा चाहिए।

 किसी भी माह में संक्रांति के दिन बिल्व पत्र तोडऩा शुभ नहीं माना गया है।

यहां विराजमान हैं भगवान शिव
शिव पुराण में उल्लेख किया गया है कि बिल्व वृक्ष की जड़ में भगवान शिव स्वयं शिवलिंग रूप में विराजमान रहते हैं। इसलिए बिल्व वृक्ष की पूजा में इसकी जड़ में जल अर्पित किया जाता है। यह भी मान्यता है कि बिल्व पत्र की जड़ में गंगाजल चढ़ाने से सभी तीर्थों का पुण्य मिल जाता है।

इस मंत्र के साथ करें शिव को अर्पण
शिव पूजा में तीन पत्तियों वाला बिल्व पत्र चढ़ाया जाता है। पांच पत्तियों वाला दुर्लभ बिल्व पत्र शिव को अर्पित करने का विशेष महत्व बताया गया है। वैसे तीन पत्तियों वाले बिल्व पत्र का ही अधिक जिक्र आता है। यह शिव को अर्पित करने से लक्ष्मी, सुख, शांति और सफलता लाता है।

इससे मनुष्य को ज्ञान, भक्ति और विवेक की प्राप्ति होती है। तीन पत्तियों वाला बिल्व पत्र शिव को अर्पित करते समय यह मंत्र बोलना चाहिए-

त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं त्रयायुधम।
त्रिजन्म पापसंहारं मेकबिल्वं शिवार्पणम।।

इसका मतलब है मैं तीन गुण, तीन नेत्र, त्रिशूल धारण करने वाले और तीन जन्मों के पापों का नाश करने वाले भगवान शिव को बिल्व पत्र अर्पित करता हूं।