भस्म आरती एक रहस्यमयी व असामान्य अनुष्ठान है, जो विश्वभर में सिर्फ उज्जैन के महाकाल मंदिर में किया जाता है। महाकाल मंदिर में आयोजित होने वाले विभिन्न दैनिक अनुष्ठानों में दिन का पहला अनुष्ठान भस्म आरती होती है। ऐसी मान्यताएं हैं कि भगवान शिव को जगाने व उनका श्रृंगार करने के लिए सुबह 4 बजे यह आरती की जाती है।
महाकाल की आरती भस्म से होने के पीछे ऐसी मान्यता है कि महाकाल श्मशान के साधक हैं और यही इनका श्रृंगार और आभूषण है। शिवपुराण के अनुसार भस्म सृष्टि का सार है। एक दिन पूरी सृष्टि इसी राख के रूप में परिवर्तित होनी है। सृष्टि के सार भस्म को भगवान शिव सदैव धारण किए रहते हैं। इसका अर्थ है कि एक दिन यह संपूर्ण सृष्टि शिवजी में विलीन हो जाएगी।
वर्षों पहले श्मशान के भस्म से भूतभावन भगवान महाकाल की भस्म आरती होती थी लेकिन अब भस्म तैयार करने के लिए कपिला गाय के गोबर से बने कंडे, शमी, पीपल, पलाश, बड़, अमलतास और बेर के वृक्ष की लकडि़कों को एक साथ जलाया जाता है। इस दौरान उचित मंत्रोच्चार भी किए जाते हैं। इन चीजों को जलाने पर जो भस्म प्राप्त होती है, उसे कपड़े से छान लिया जाता है। इस प्रकार, तैयार की गई भस्म भगवान शिव को अर्पित की जाती है।
शिवजी को अर्पित की गई भस्म का तिलक लगाना चाहिए। जिस प्रकार भस्म से कई प्रकार की वस्तुएं शुद्ध व साफ की जाती हैं, उसी प्रकार भगवान शिव को अर्पित की गई भस्म का तिलक लगाने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होगी। साथ ही, कई जन्मों के पापों से भी मुक्ति मिल जाएगी। महाकाल की पूजा में भस्म का विशेष महत्व है और यही इनका सबसे प्रमुख प्रसाद है। ऐसी धारणा है कि शिव के ऊपर चढ़े हुए भस्म का प्रसाद ग्रहण करने मात्र से रोग दोष से मुक्ति मिलती है।
इस आरती का एक प्रमुख नियम यह भी है कि इसे महिलाएं नहीं देख सकती हैं। इसलिए आरती के दौरान कुछ समय के लिए महिलाओं को घूंघट करना पड़ता है। आरती के दौरान पुजारी एक वस्त्र धोती में होते हैं। इस आरती में अन्य वस्त्रों को धारण करने का नियम नहीं है।