हिन्दु धर्म ग्रंथों में अनेक पवित्र नदियों की महिमा बताई गई है। इनमें परम पवित्र गंगा नदी पापों का नाश करने वाली मानी गई है। हर नदी का अपना धार्मिक महत्व बताया गया है। इसी क्रम में मध्यप्रदेश की दो पवित्र नदियों नर्मदा और क्षिप्रा से भी जन-जन की आस्था जुड़ी है। जहां नर्मदा को ज्ञान प्रदायिनी यानि ज्ञान देने वाली माना गया है। वहीं उज्जैन नगर की जीवन धारा, क्षिप्रा को मोक्ष देने वाली, यानि जन्म -मरण के बंधन से मुक्त करने वाली माना गया है।

क्षिप्रा नदी का उद्गम, मध्यप्रदेश के महू छावनी से लगभग 17 किलोमीटर दूर, जानापाव की पहाडिय़ों से माना गया है। यह स्थान भगवान विष्णु के अवतार भगवान परशुराम का जन्म स्थान भी माना गया है।

पुराणों में अवंतिका यानि आधुनिक उज्जैन को सात पुरियों में गिना जाता है। यह मध्यप्रदेश के साथ ही देश का प्रमुख धार्मिक, सांस्कृतिक और प्राचीन नगर है। यह क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित है। यहां क्षिप्रा नदी और उसमें स्नान का महत्व वैसा ही माना गया है, जितना इलाहाबाद, प्रयाग, हरिद्वार और काशी में गंगास्नान का है।

उज्जैन में महाकालेश्वर ज्योर्तिंलिंग, शक्तिपीठ हरसिद्धि, पवित्र वट वृक्ष सिद्धवट सहित अनेक पवित्र धार्मिक स्थल होने के साथ 12 वर्षों में होने वाले सिंहस्थ स्नान के कारण क्षिप्रा नदी का धार्मिक महत्व है।

मेष राशि में सूर्य और सिंह राशि में गुरु के योग बनने पर, उज्जैन की पुण्य भूमि पर क्षिप्रा के अमृत समान जल में कुंभ स्नान करने पर कोई भी व्यक्ति जनम-मरण के बंधन से छूट जाता है।

क्षिप्रा नदी के किनारे स्थित सांदीपनी आश्रम में भगवान श्रीकृष्ण, बलराम और उनके प्रिय सखा सुदामा ने विद्या अध्ययन किया। राजा भर्तृहरि और गुरु गोरखनाथ ने भी इस पवित्र नदी के तट पर तपस्या से सिद्धि प्राप्त की।

क्षिप्रा नदी के किनारे के घाटों का भी पौराणिक महत्व है। जिनमें रामघाट मुख्य घाट माना जाता है। माना जाता है कि भगवान श्रीराम ने पिता दशरथ का श्राद्धकर्म और तर्पण इसी घाट पर किया था। इसके अलावा नृसिंह घाट, गंगा घाट, पिशाचमोचन तीर्थ, गंधर्व तीर्थ भी प्रमुख घाट हैं।

उज्जैन नगर को शिव की नगरी माना जाता है। अत: यहां महाशिवरात्रि पर्व के साथ ही कार्तिक पूर्णिमा और गंगा दशहरा के दिन श्रद्धालु क्षिप्रा में स्नान के लिए बड़ी संख्या में आते हैं। स्नान, दान, जप कर वह धर्म लाभ अर्जित करते हैं। स्कंदपुराण में भी क्षिप्रा नदी की महिमा बताई है। यह नदी अपने उद्गम स्थल से बहते हुए चंबल नदी से मिल जाती है। मान्यता है कि प्राचीन समय में इसके तेज बहाव के कारण ही इसका नाम क्षिप्रा प्रसिद्ध हुआ।

उज्जैन नगर को तीन ओर से घेरे क्षिप्रा का अपना ही आकर्षण है। उज्जैन के दक्षिण-पूर्वी सिरे से नगर में प्रवेश कर क्षिप्रा ने यहां के हर स्थान से अपना अंतरंग संबंध स्थापित किया है। क्षिप्रा के घाटों पर प्राकृतिक सौन्दर्य की छटा बिखरी पडी है, उज्जैन में क्षिप्रा के तट पर होने वाली गंगा और क्षिप्रा आरती के दिव्य अध्यात्मिक वातावरण में श्रद्धालू डूब जाते हैं।

भर्तृहरि गुफा, पीर मछिन्दर , गढकालिका का क्षेत्र ,मंगलनाथ मंदिर, सान्दीपनि आश्रम ,राम-जनार्दन मंदिर ,सिध्दवट, काल भैरव और कालियादेह महल जैसे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल क्षिप्रा नदी के किनारों पर ही हैं ।”